वडोदरा में पहली बार आयोजित हुआ पृथ्वी नमस्कार: धरती मां को समर्पित अनोखी आध्यात्मिक साधना
वडोदरा ने पहली बार एक अनोखे इको-स्पिरिचुअल आयोजन "पृथ्वी नमस्कार" की मेज़बानी की, जिसका आयोजन S.N. फाउंडेशन द्वारा किया गया। इस आध्यात्मिक योग अभ्यास की परिकल्पना और निर्देशन संस्थापक प्रवीण मरिपेली ने किया।
वडोदरा में पहली बार "पृथ्वी नमस्कार" का आयोजन, मां धरती को समर्पित अनोखी आध्यात्मिक प्रस्तुति
वडोदरा ने एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण देखा, जिसे सिर्फ योग या पर्यावरण से जोड़ना कम होगा — यह था "पृथ्वी नमस्कार" का पहला आयोजन, एक ऐसी इको-स्पिरिचुअल प्रस्तुति जो आत्मा से धरती तक की यात्रा को समर्पित थी।
इस आयोजन का नेतृत्व किया S.N. फाउंडेशन ने, जिसे सामुदायिक योग आयोजनों के लिए जाना जाता है। प्रवीण मरिपेली, जो इस फाउंडेशन के संस्थापक और इस अभिनव संकल्पना के सूत्रधार हैं, उन्होंने इस पूरे आयोजन को डिज़ाइन किया।

इस अनोखे आयोजन में देशभर से 100 से ज़्यादा प्रतिभागियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से भाग लिया।
क्या है पृथ्वी नमस्कार?
पृथ्वी नमस्कार एक 14-स्टेप अभ्यास है जो शरीर, मन और आत्मा को धरती से जोड़ता है। इसमें मल्टी-प्लेनर मूवमेंट्स, माइंडफुल ब्रीदिंग, चैण्टिंग, और भक्ति-भाव से की गई शारीरिक गतिविधियां शामिल होती हैं।
इसका खास हिस्सा – भूमि नमस्कार – मां पृथ्वी के प्रति आभार प्रकट करने का माध्यम है, जो हर जीवन को धारण करती है, न सिर्फ इंसानों का, बल्कि समस्त जीव-जंतुओं का।
आयोजन की खासियतें
यह कार्यक्रम FC Arena 360, कालाली में आयोजित हुआ, जो अपनी गोलाई में बना विशेष परिसर है। प्रतिभागियों को गोल घेरे में खड़ा कर धरती को समर्पण का प्रतीकात्मक स्वरूप दिया गया।
और सबसे खास बात – यहां योगा मेट्स का प्रयोग नहीं किया गया। सभी प्रतिभागी सीधे धरती पर अभ्यास करते नजर आए। इसका उद्देश्य था मिट्टी से सीधा संपर्क, विनम्रता का भाव, और प्रकृति से जुड़ने की सच्ची अनुभूति।

108 बार किया गया अभ्यास
हर प्रतिभागी ने इस पूरी प्रक्रिया को 108 बार दोहराया। हर सांस, हर गति, और हर स्पंदन — सब कुछ धरती मां को समर्पित था। यह सिर्फ एक योग सत्र नहीं था, बल्कि एक सामूहिक प्रार्थना थी, जिसमें श्रद्धा के साथ-साथ पर्यावरण चेतना भी जुड़ी थी।
संदेश सिर्फ योग का नहीं, ज़िम्मेदारी का भी
पृथ्वी नमस्कार के जरिए न केवल शारीरिक और मानसिक एकता को महत्व दिया गया, बल्कि यह संदेश भी दिया गया कि धरती सिर्फ रहने की जगह नहीं, वह पूजनीय है — और इसकी रक्षा करना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है।

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